amazing fact

आज हम बहुत से रोचक तथ्य के बारे में जानकारी प्राप्त करने जा रहे हैं तो आज हमारा ब्लॉक इन्हीं रोचक तथ्य के बारे में हैं जिसका नाम है अमेजिंग फैक्ट विद मी
1. भारत का रहस्यमई शिव मंदिर कौन सा है?
               भारत का सबसे रहस्यमई शिव मंदिर उत्तराखंड  का श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग है
2.  मेघनाथ ने कौन सा बाण चलाकर लक्ष्मण को मूर्छित किया था?
             मेघनाथ ने शक्ति बाण चलाकर लक्ष्मण को मूर्छित किया था ।
3.भीष्म पितामह की उम्र कितने वर्ष थी?
          भीष्म पितामह को उनके पिता महाराज शांतनु से इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था इसके कारण जब उनकी मृत्यु हुई तब उनकी उम्र 150 वर्ष से ज्यादा की बताई जाती है।
4.अमृतसर शहर की स्थापना किसने की?
            अमृतसर शहर की स्थापना गुरु रामदस जी ने की थी।
5.भारत देश में सबसे पहले सूर्य कहां निकलता है?
            भारत देश में सबसे पहले सूर्य अरुणाचल प्रदेश में निकलता है और इसी कारण इस प्रांत का नाम अरुणाचल प्रदेश में रखा गया है।
6. भगवान राम के गुरु का नाम क्या था?
             भगवान राम के गुरु का नाम विश्वामित्र था ।
7.महाभारत में अभिमन्यु के पुत्र का नाम क्या था?
                  महाभारत में अभिमन्यु के पुत्र का नाम परीक्षित था।
8.महाभारत में महारथी करण के गुरु का नाम क्या था? 
               महाभारत में महारथी कर्ण के गुरु का नाम भगवान परशुराम था।
9.द्रोपती की मृत्यु कैसे हुई?
               द्रोपदी तथा पांच पांडव स्वर्ग ओर प्रस्थान कर रहे थे तब सुमेर पर्वत से नीचे गिरने के दौरान द्रौपदी की मृत्यु हो गई थी द्रोपदी पांचो पांडव में से सबसे अधिक अर्जुन से प्रेम करती थी इस कारण स्वर्ग के मार्ग में सबसे पहले द्रोपदी की मृत्यु हुई।
10. पर्वतों की रानी किसेे कहा जाता है?                                   मसूरी भारत के उत्तराखंड राज्य का एक पर्वतीय नगर है जिसे पर्वतों की रानी कहा जाता है।

हाड़ी रानी

इतिहास में हमें बहुत सी रानियों के बहादुरी के किस्से सुनने को मिलते हैं इनमें जैसे की रानी लक्ष्मीबाई पद्मावती जैसी महान रानियों के नाम उल्लेखित होते हैं और इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से इनके नाम लिखे जाते हैं परंतु इन्हीं रानियों में से एक रानी ऐसी थी जो कि आज के चर्चाओं में नहीं लेकिन उन्होंने भी बहुत से वीरता पूर्वक कार्य किए हैं उन्हीं में से हाडी रानी एक है जिन्होंने अपने पति यानी कि राजा को अपना शीश काट कर दे दिया था।

आज इतिहास में कई बार सुना जाता है कि कौन सी रानी ने अपना सिर काटकर राजा को भेज दिया था?
                      ॓॓॓चुंडावत मांगी सेनानी  सिर काट के दियो क्षत्राणी ॔॔ ॔  
इस प्रकार का वाक्य है जो कि वहां की बोलचाल वाली भाषा में कहा जाता है तो चुंडावत मांगी सेनानी फिर सिर काट के दियो क्षत्राणी इस वाक्य में कहा गया है कि यह कहानी जो है जो इस वाक्य से स्पष्ट हो जाती है कि 16वी शताब्दी की है मतलब यह बात जो है वह सोलवीं शताब्दी की है जब मेवाड़ का राजाराज सिंह का शासन था जिनके सामंत सलूंबर के राव चूंड़ावत‌ रतन सिंह थे ।
रतन सिंह की शादी उसी दौरान हाडा राजपूत सरदार की बेटी हाड़ी रानी से हुई थी अभी शादी को ज्यादा दिन भी नहीं हुए था कि  रावत रतन सिंह को महाराणा राज सिंह का संदेश मिला जिसमें रतन सिंह ने दिल्ली से औरंगजेब की मदद के लिए आ रही अतिरिक्त सेना को किसी भी हाल में रोकने का निर्देश था।
 इसके बाद रतन सिंह सेना के साथ महल से कूच कर गए लेकिन उनका ध्यान अभी रानी की ओर ही लगा था फिर रावत रतन सिंह चुंडावत जी ने अपने सेवक को रानी के पास भेजा और युद्ध में जाते समय वह अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई भी निशानी मांगी तो रानी ने सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के तौर पर अपना सर काट कर दे दिया।
 अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका कर औरंगजेब की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो गए तो यह कहानी हाडा रानी की है जो कि हाडा राजपूत सरदार की बेटी थी और औरंगजेब से लड़ते हुए उनके पति की मृत्यु हो गई और रावत रतन सिंह हाडा रानी के पति थे जो कि मेवाड़ प्रांत के राजा थे।

कैसी लगी जानकारी यहां मैं कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और ऐसे ही रोचक तथ्यों के बारे में जानने के लिए और भारत के इतिहास के बारे में जानने के लिए हमारे ब्लॉग स्पॉट चैनल को जरूर पढ़ते रहें।

धन्यवाद।

हमरा असली इतिहस

भरे दरबार मे शाहजहाँ के साले सलावत खान ने अमर सिंह राठौड़ (नागौर राजा) को हिन्दू और काफ़िर कह कर गालियाँ बकनी शुरू की और सभी मुगल दरबारी उन गालियों को सुनकर हँस रहे थे...!

अगले ही पल सैनिकों और शाहजहाँ के सामने वहीं पर दरबार में अमर सिंह राठौड़ ने सलावत खान का सर काट फेंका ...!
शाहजहाँ कि सांस थम गयी। इस 'शेर' के इस कारनामे को देख कर मौजूद सैनिक वहाँ से भागने लगे. अफरा तफरी मच गयी, किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमर सिंह को रोके या उनसे कुछ कहे. मुसलमान दरबारी जान लेकर इधर-उधर भागने लगे.
अमर सिंह अपने घोड़े को किले से कुदाकर घर (नागौर) लौट आये.

शारजहाँ ने हुए इस अपमान का बदला लेने हेतु अमर सिंह के विश्वासी को नागौर भेजा और सन्धि प्रस्ताव हेतु पुनः दरबार बुलाया. अमर सिंह विश्वासी की बातों में आकर दरबार चले गए.

अमर सिंह जब एक छोटे दरवाज़े से अंदर जा रहे थे तो उन्ही के विश्वासी ने पीछे से उनपर हमला करके उन्हें मार दिया ! ऐसी हिजड़ों जैसी विजय पाकर शाहजहां हर्ष से खिल उठा.

उसने अमर सिंह की लाश को एक बुर्ज पे डलवा दिया ताकि उस लाश को चील कौए खा लें.

अमर सिंह की रानी ने जब ये समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की देह के
बिना वह वो सती कैसे होती। रानी ने बचे हुए थोड़े राजपूतों सरदारो से  अपनें पति की देह लाने को प्रार्थना की पर किसी ने हिम्मत नहीं कि और तब अन्त में उनको अमरसिंह के परम मित्र बल्लुजी चम्पावत की याद आई और उनको बुलवाने को भेजा ! बल्लूजी अपनें प्रिय घोड़े पर सवार होकर पहुंचे जो उनको मेवाड़ के महाराणा नें बक्शा था !

उसने कहा- 'राणी साहिबा' मैं जाता हूं या तो मालिक की देह को लेकर आऊंगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।'
वह राजपूत वीर घोड़े पर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ाता सीधे बादशाह के महल में पहुंच गया।

महल का फाटक जैसे ही खुला द्वारपाल बल्लु जी को अच्छी तरह से देख भी नहीं पाये कि वो घोड़ा दौड़ाते हुवे वहाँ चले गए जहाँ पर वीरवर अमर सिंह की देह रखी हुई थी !
बुर्ज के ऊपर पहुंचते-पहुंचते सैकड़ों मुसलमान सैनिकों ने उन्हें घेर लिया।

      बल्लूजी को अपनें मरने-जीने की चिन्ता नहीं थी। उन्होंने मुख में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी,दोनों हाथों से
तलवार चला रहे थे ! उसका पूरा शरीर खून से लथपथ था। सैकड़ों नहीं, हजारों मुसलमान सैनिक उनके पीछे थे
जिनकी लाशें गिरती जा रही थीं और उन लाशों पर से बल्लूजी आगे बढ़ते जा रहा थे !

वह मुर्दों की छाती पर
होते बुर्ज पर चढ़ गये और अमर सिंह की लाश उठाकर अपनें कंधे पर रखी और एक हाथ से तलवार चलाते हुवे घोड़े पर उनकी देह को रखकर आप भी बैठ गये और सीधे घोड़ा दौड़ाते हुवे गढ़ की बुर्ज के ऊपर चढ़ गए और घोड़े को नीचे कूदा दिया ! नीचे मुसलमानों की सेना आने से पहले बिजली की भाँति अपने घोड़े सहित वहाँ पहुँच चुके थे

जहाँ रानी चिता सजाकर तैयार थी !
अपने पति की देह पाकर वो चिता में ख़ुशी ख़ुशी बैठ गई !
सती ने बल्लू जी को आशीर्वाद दिया- 'बेटा ! गौ,ब्राह्मण,धर्म और सती स्त्री की रक्षा
के लिए जो संकट उठाता है,

भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं। आपनें आज मेरी प्रतिष्ठा रखी है। आपका यश
संसार में सदा अमर रहेगा।' बल्लू चम्पावत मुसलमानों से लड़ते हुवे वीर गति को प्राप्त हुवे उनका दाहसंस्कार
यमुना के किनारे पर हुआ उनके और उनके घोड़े की याद में वहां पर स्म्रति स्थल बनवाया गया जो अभी भी मौजूद है !

अंत मे वही सवाल पे आकर खड़ा हूँ कि हमारा असली इतिहास कहाँ है...? कब तक मुगल महान पढ़ते रहेंगे?

भाषा और लिपि का परिचय और अंतर कक्षा 12 pdf

संसार में संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी , बांग्ला , गुजराती , उर्दू,  मलयालम ,पंजाबी ,उड़िया, जर्मन  , इतालवी , चीनी जैसी अनेक भाषाएं हैं ।भारत अ...