अशोक का धम्म (धर्म ) क्या है?
अशोक के धम्म की परिभाषा - अशोक मनुष्य की नैतिक उन्नति हेतु जिन आदर्शों का प्रतिपादन किया उन्हें "धम्म" कहा जाता है। अशोक के धम्म की परिभाषा दूसरे तथा सातवें स्तंभ लेख में दी गई है ।
अशोक के धम्म की नीति -
अशोक के धम्म की मुख्य नीति मनुष्य की नैतिक उन्नति करना है ।नैतिक उन्नति कर अशोक आम लोगो मे जीव मात्र के प्रति दया व करुणा का भाव उत्पन्न करना ही अशोक का मुख्य उद्देश है।
मौर्य सम्राट अशोक के धम्म की विशेषताएं
उसके अनुसार पाप कर्म से निवृत्ति, विश्वकल्याण, दया, सत्य एवं कर्म शुद्धि ही धम्म है। साधु स्वभाव होना, कल्याणकारी कार्य करना, पाप रहित होना ,व्यवहार में मृदुता लाना, दया रखना ,दान करना ,शुचिता रखना, प्राणियों का वध न करना, माता-पिता व अन्य बड़ों की आज्ञा मानना ,गुरु के प्रति आदर, मित्रों ,परिचितों, संबंधियों, ब्राह्मणों -श्रमणो के प्रति दान शीलता होना व उचित व्यवहार करना अशोक द्वारा प्रतिपादित धम्म की आवश्यक शर्तें है। तीसरे अभिलेख के अनुसार धम्म में अल्प संग्रह और अल्प व्यय का भी विधान था। भब्रु शिलालेख के अनुसार अशोक ने बुद्ध की त्रिरत्नों बुद्ध ,धम्म व संघ के प्रति अपनी आस्था प्रकट की।
सांची ( रायसेन ,मध्य प्रदेश )व सारनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) लघु स्तंभ लेख में अशोक ने कौशांबी तथा पाटलिपुत्र को आदेश दिया कि संघ मे फूट डालने वाले भिक्षु भिक्षुणियों बहिष्कृत कर दिया जाए। प्रथम शिलालेख में यह विज्ञप्ति जारी की गयी कि किसी भी यज्ञ के लिए पशुओ का वध न किया जाए।
धम्म यात्रा -
अशोक से पूर्व "विहार यात्राएं" की जाती थी । जिनमें राजा पशुओंं का शिकार करते थे । अशोक ने इनके स्थान पर का धम्म यात्रा का प्रावधान किया , जिसमें बौध्द स्थानों की यात्रा तथा ब्राह्मणों , श्रमणो व वृध्दो को स्वर्ण दान किया जाता था ।
अनुसंधान। -
अशोक के काल में राज्य के कर्मचारियों - प्रादेशिको राज्जुको और युक्तको के प्रति 5 वें वर्ष धर्म -प्रचार हेतु यात्रा पर भेजा जाता था, जिसे लेखों में "अनुसंधान"अर्थात् खोज कहा गया है ।
धम महामात्र-
राज्य अभिषेक के 14 वें वर्ष में अशोक ने धम्म महामात्रो की नियुक्ति की, जिनके मुख्य कार्य थे -जनता में धम्म का प्रचार करना , उन्हें कल्याणकारी कार्य करने, तथा दान शीलता के लिए प्रोत्साहित करना , कारावास से कैदियों को मुक्त करना या उनकी सजा कम करना, उनके परिवार की आर्थिक सहायता करना आदि।
अभिलेख-
अशोक प्रथम शासक था, जिसने अभिलेखों के माध्यम से अपनी प्रजा को संबोधित किया , जिसकी प्रेरणा उसे ईरानी राजा दारा (डेरियस- प्रथम) से मिली थी । अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है ,जबकि पश्चिम उत्तर भारत ( मन्सेेरा ,शाहबाजगढ़ी ) से प्राप्त उसके अभिलेख खरोष्ठी लिपि में है । टोपरा से दिल्ली लाए गए एक स्तंभ पर 7 लेख एक साथ उत्कीर्णित हैं। जिसके दूसरे व तीसरे अभिलेख में यवन नरेश आंटियोंकस द्वितीय का उल्लेख है। अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में पहली बार सफलता जेम्स प्रिंसेप को प्राप्त हुई ।
तामपर्णी( श्रीलंका ) के राजा तिस्स ने अशोक से प्रभावित होकर देवनांपिय की उपाधि धारण की थी । दूसरे राज्य अभिषेक के अवसर पर उसने अशोक को आमंत्रित भी किया था। अशोक का पुत्र महेंद्र बोधिवृक्ष का एक भाग लेकर वहां पहुंचा । यहां से श्रीलंका में बौद्ध धर्म का पदार्पण किया माना जाता है। 40 वर्ष शासन करने के बाद 232 ई.पू. में अशोक की मृत्यु हो गई।
अशोक के उत्तराधिकारी तथा मौर्य साम्राज्य का पतन -
अशोक के बाद अगले 50 वर्ष तक उसके कमजोर उत्तराधिकारियों का शासन रहा। अशोक के बाद कुणाल राजा बना जिसे दिव्यावदान में "धर्म विवर्धन" कहा गया हैं । "राज तरंगिणी " के अनुसार उस समय जलौक कश्मीर का शासक थाा। तारानाथ के अनुसार अशोक का पुत्र वीरसेन गांधार का स्वतंत्र शासक बन गया था। कुणाल के अंधा होने के कारण मगध का प्रशासन उसके पुत्र संप्रत्ति के हाथ में आ गया था। कुणाल के पुत्र दशरथ ने भी मगध पर शासन किया । उसने नागार्जुनी गुफाएं आजीविकों को दान में दे दी थी ।
वृहद्रथ अंतिम मौर्य सम्राट था। उसके ब्राह्मण मंत्री पुष्यमित्र शुंग ने उसकी हत्या करके मगध में शुंग वंश के शासन की नींव डाली ।
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