Hindi aniwarya (अनिवार्य हिंदी अलंकार)

अलंकार की परिभाषा-
                                "अलम्  करोति इति अलंकार ।"
अर्थात जो अलंकृत करे वही अलंकार होता है।

*अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है -आभूषण या गहना।

*जिस प्रकार स्त्री की सौंदर्य की वृद्धि में आभूषण सहायक होते हैं उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार बढ़ाते हैं।

*आचार्य भामाह के अनुसार "शब्द और अर्थ की विचित्रता हि अलंकार है।"

*आचार्य दंडी के अनुसार" काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व ही अलंकार है।"

*आचार्य रुद्रट के अनुसार "कथन के विशिष्ट प्रकार ही अलंकार है।"
अलंकार के भेद-
                        अलंकार तीन प्रकार के होते हैं --१शब्दालंकार ,   २अर्थालंकार ,  ३उभया अलंकार
१.शब्दालंकार -जहां शब्द में चमत्कार हो रहा हो वहां शब्दालंकार होता हैै।
२.अर्थालंकार -जहां अर्थ में  चमत्कार  होता हो वहां अर्थालंकार होता ।
३.उभया अलंकार -उभयाअलंकार में शब्द और अर्थ दोनों में चमत्कार होता है।

1.यमक अलंकार-
                         काव्य में जब एक ही शब्द की आवर्ती दो या दो से अधिक बार हो और प्रत्येक बार उसके अर्थ में भिन्नताा हो वहां यमक अलंकार होता हैै।
             उदाहरण-
     * कनक -कनक ते सौ गुनी ,मादकता अधिकाय।
        या खायै बौराय, जग वा पायै बौराय है।।
            यहां पर कनक कनक शब्द दो बार आया हैै जहां पर पहले कनक का अर्थ सोना है (स्वर्ण )और दूसरे कनक का अर्थ धतुरा है ।आगेे कहा गया है दोनों की अधिकता खराब हैै क्योंकि जो धतूरा खा ले वह मर जाएगा और जो स्वर्ण को अधिक प्राप्त कर ले वह पागल हो जाएगाा जो कि मरने के समान है।
       * हे तना, तू क्यूं है तना।
               इसमें तना तना शब्द दो बार आया है जिसमें पहले तने का अर्थ पेड़ की टहनी से है और दूसरे तने का अर्थ कठोर या तने हुए या सीधा रहने से है।

2. श्लेष अलंकार-
                     श्लेष का शाब्दिक अर्थ है" चिपका हुआ"।
काव्य में शब्द की आवर्ती एक ही बार होती है लेकिन प्रसंग अनुसार उस शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं, वहां श्लेष अलंकार होता है।
             उदाहरण-
          *रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
            पानी गए ना उबरे मोती मानस चून।।
                  यहां पर पानी शब्द तीन  बार आया है  पानी का अर्थ जल से है अर्थात पानी संभाल कर  रखिए बिना पानी  संसार सुना है और पानी के बिना ना हींं मोती बनेंगे और ना ही मनुष्य जीवित रहेगा और ना ही चून (आटा )पकाया जाएगा।

3. रूपक अलंकार-
                             जब उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाता है वहां रूपक अलंकार होता हैैैैैै ।आरोप का अर्थ है दो वस्तुओ को एक ही रूप देना अथवा एक वस्तु को दूसरी वस्तु के साथ इस प्रकार रखना कि दोनों मे कोई भी भिन्नता या भेदता ही ‌ना रहे ।
                उदाहरण-
          * अवधेस के बालक चारि ,सदा तुलसी मन - 
मंदिर में  विहरै।
             यहां पर अवधेस अर्थात अवध देश के 4 बालक राम ,लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न सदैव तुलसीदास जी के मन और मन्दिर में विराजमान हैं अर्थात यहां पर तुलसीदास जी के मन और मन्दिर दोनों में समानता प्रकट की गई है इनमें किसी भी प्रकार से भिन्नता नहीं है।

4. उपमा अलंकार-
                           यह उप +मा शब्दों से बना है। उप का अर्थ हैैैैैै "समीप"  ,   मां का अर्थ है मापना है अर्थात जब किसी प्रस्तुत (उपमेय)की अप्रस्तुत(उपमान ) से उपमा की  जाए तो वहां उपमा अलंकार होता है इसे अलंकारों का राजा माना गया है इसके चार तत्व है उपमेय, उपमान, वाचक शब्द और साधारण धर्म।
    ०   उपमेय-जिसकी उपमा की जाए।
    ०    उपमान-जिससे उपमा की जाए।
    ०   वाचक शब्द- सा, सी, से, सम, इव, सरिस,                                       सदृश्य, के समान, के तरह, तुल्य । 
    ० साधारण धर्म- उपमेय तथा उपमान का समान गुण।
               उदाहरण-
         * सागर सा धीर गंभीर हृदय है ।
                इसमें उपमेय - हृदय
                        उपमान- सागर
                        वाचक शब्द- सा
                        साधारण धर्म- धीर गंभीर है।
5. उत्प्रेक्षा अलंकार-
                             जहां उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त की जाए वहांं उत्प्रेक्षा अलंकार होता है । इसकी पहचान के लिए वाचक शब्द - मनु , मानो, जनु, जानो, मन्हुुुु , जन्हु , मान्हु , जान्हुु।
               उदाहरण-
           * सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात ।
         मानो नीलमणि शैल पर आत्प परयौ प्रभात ।।
                     इसमें कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने नीले रंंग के शरीर पर पीला वस्त्र ओढ़ कर सो रहे हैं जैसे कि नील मणि पर्वत पर सूरज का प्रकाश फैला हो और सुबह का समय हो रहा हो।

6. विरोधाभास अलंकार-
                                   जहां विरोध ना होने पर भी विरोध का  आभास होता  है ।वहां विरोधाभास अलंकार होता हैै । अर्थात जिस  किसी वाक्य में  विरोध का भाव उत्पन्न ही ना हो रहा हो और फिर  भी विरोध किया जा रहा हो वहां विरोधाभास अलंकार होता हैै।
              उदाहरण-
        *मैं अंधा भी देख रहा हूं ,तुम रोती हो तुम रोती हो।
                इस वाक्य में रोते हुए को एक अंधा  देखने का दावा करता जिससे कि स्पष्ट रूप से विरोध का भाव उत्पन्न हो रहा है ,इसलिए यहां विरोधाभास अलंकार है ।

7. अनुप्रास अलंकार-
                                             अनुप्रास का अर्थ है।        (अनु+प्रास )अर्थात  ( पास पास )। इसमें हिंदी वर्णमाला के वर्णों या शब्दो को इस तरफ निकट रखा जाता है कि उनकी बार-बार आवृत्ति की एक छटा बन जाती है ।अन्य शब्दों में एक ही वर्ण या शब्द की आवृत्ति जहां बार-बार होती है वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
इसके पांच भेद होते हैं जिनके नाम निम्न वत है --
        ० छेकानुप्रास
        ० वृत्यानुप्रास
        ० श्रुत्यानुप्रास
        ० लाटानुप्रास
        ०अन्त्यानुप्रास
               उदाहरण-
           *तरनि - तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छायै।
              इसमें  "त"  वर्ण की बार-बार पुनरावृति हो रही है।
           * भगवान भक्तों की भयंकर भुरी भिति भगाइए।
              इसमें  "भ "  वर्ण की बार-बार पुनरावृति हो रही है। 

8. उदाहरण अलंकार-
                              काव्य में जहां एक कथन की पुष्टि के लिए दूसरे कथन को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है वहां उदाहरण अलंकार होता है उदाहरण अलंकार में वाचक शब्द (ज्यो , जैसे )  आदि का प्रयोग होता है।
          उदाहरण-
      * नयना  देय बताय सब हिय को हेत अहेत।
        जैसे निर्मल आरसी ,भली बुरी कहीं देत।।
           इसमें कहा गया है कि नेत्र जो है वह हृदय का हित अहित एक पल में बता देते हैं जैसे कि कोई निर्मल हृदय वाला व्यक्ति भली बुरी जो भी हो कह देता है बिना भावनाओं को जाने।

              

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