1. अन्योक्ति अलंकार-
जहां अप्रस्तुत के वर्णन के माध्यम से प्रस्तुत का ज्ञान होता हो वहां अन्योक्ति अलंकार होता है। यह अर्थालंकार है इसे अन्योक्ति इसलिए कहा जाता है की जिससे कुछ कहना होता है उससे ना कह कर अन्य से कहा जाता है तथा इस प्रकार से उसे सूचित किया जाता है इसमें किसी वस्तु का सीधा वर्णन ना करके उसी के समान किसी और वस्तु का वर्णन करके उस वस्तु का ज्ञान कराया जाता हैै।
उदाहरण-
* माली आवत देखिके ,कलियन करे पुकार।
फूले -फूले चुन लिए, काल्हि हमारी बार ।।
इसमें वर्णन माली, कलियों और फूलों का है यह अप्रस्तुत है ,इनसे काल ,युवा पुरुषों और वृद्ध जनों का अर्थ व्यक्त हुआ है । प्रस्तुत अर्थ है काल अर्थात यमराज वृद्धजनों को ले जा रहा है, कुछ समय बाद हमारी भी बारी आएगी।
2. समासोक्ति अलंकार-
जहां पर कार्य, लिंग या विशेषण की समानता के कारण प्रस्तुत के कथन में अप्रस्तुत व्यवहार का समारोप होता है अथवा अप्रस्तुत का स्पूर्ण होता है वहां समासोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
*सिंधु सेज पर धरा वधू अब,
तनिक संकुचित बैठी-सी ।
प्रलय निशा की हलचल स्मृति में,
मान किए सी, ऐंठी सी । ।
इसमें समान विशेषण के द्वारा धरा ( पृथ्वी) एवं नायिका का वर्णन एक साथ किया गया है इसलिए समासोक्ति अलंकार है।
3. विभावना अलंकार-
जब कारण के बिना ही कार्य की उत्पत्ति हो तब वहां विभावना अलंकार होता है। इसमें बिनाा, बिनुु, बिन्हूं आदि शब्द इसकी पहचान प्रकट करते हैं ।यह विशेषोक्ति अलंकार का विपरीतार्थक है।
उदाहरण-
*बिनु पद चले, सुने बिनु काना।
कर बिनु कर्म करे विधि नाना ।।
बिनु (बिना )पद ( पैर) चलने की और सुने (सुनना )बिनु (बिना )कान के
कर (हाथ )कर्म (कार्य) करने कीऔर विधि (विभिन्न) काम करने की बात हो रही है।
*निंदक नियरे राखिए ,आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल करे सुभाय।।
इसमें निंदा करनेे वालों को पास मेंं घर केेेे आंगन में रखने के लिए कहा गया है जोकि बिना साबुन और बिना जल के ही आपको निर्मल कर देंगे अर्थात् वह आपको कह कह कर पूर्ण रूप से सटीक एवं सार्थक और स्वाभिमानी व्यक्ति बना देंगे।
4. विशेषोक्ति अलंकार-
जहां कारण होने पर भी कार्य का न होना प्रदर्शित किया जाए वहां विशेषोक्ति अलंकार होता है ।यह विभावना का विपरीतार्थक होता है ।
उदाहरण-
*नेह न नैननी को कछु, उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाय ।।
यहां प्यास बुझाना कार्य है और कारण नीर अर्थात पानी है ।नीर नयन में रहता है और जल से प्यास बुझनी चाहिए परंतु उससेेेे प्यास नहीं बुझ रही कारण विद्यमान है फिर भी कार्य नहीं होना वर्णित है। यहांं विशेषोक्ति अलंकार है
5.दृष्टांत अलंकार-
दृष्टांत अलंकार उस अलंकार को कहते हैं जिसमें उपमेय और उपमान वाक्य दोनों में उपमान ,उपमेय और साधारण धर्म का बिंब प्रतिबिंब भाव दिखाई देता है ।पहलेेेे एक बात कहीं जाती है फिर उससे मिलती-जुलती दूूूसरी बात कही जाती है इस प्रकार उपमेय वाक्य की उपमान वाक्य से बिम्बात्मक समानता प्रकट की जाती है।
उदाहरण-
* बिगड़ी बात बने नहीं,लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
यहां पर कहा गया है कि एक बार बात बिगड़ने पर भी वह पुरानी जैसी नहीं रहती उसमें कोई ना कोई बाधा जरूर आती है अर्थात कोई न कोई चूक रह जाती है आगे कहते हैं कि रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होय मतलब फटे हुए दूध को कितना भी मथ लो लेकिन उसका मक्खन नहीं निकलेगा क्योंकि मक्खन बनाने से पहले फटे हुए दूध को दही में बदलना पड़ता है और दही को मथने पर ही माखन बनता है तो यहां पर बात की और दूध की बिंबात्मक समानता प्रकट की गई है यहां पर दृष्टांत अलंकार है।
6. प्रतीप अलंकार-
प्रतीप का अर्थ है 'उल्टा' । जहांं प्रसिद्ध उपमान का उपमेय की तुलना में अपकर्ष प्रकट किया जाता है वहां प्रतीप अलंकार होता है। यह उपमा अलंकार के विपरीतार्थक होने पर 'प्रतीप' कहलाता है।
उदाहरण-
*सिय मुख समता पांव किमी , चन्द्र बापुरो रंक।
इसमें प्रसिद्ध उपमान चंद्रमा को हीन बता कर सिय (सीता)मुख अर्थात् उपमेय को उत्कर्ष दिखाया गया है।
7. मानवीकरण अलंकार-
यह पाश्चात्य अलंकार है। इसमें जड़ पदार्थों, प्राकृतिक दृश्य तथा अमूूर्त वस्तुओं का वर्णन जब उन्हें मानव अनुभूतियों का मूल रूप और व्यक्तित्व प्रदान करते हुए किया जाता है वहां मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण-
* कली से कहता था मधुमास,
बता दो मधु मदिरा का मोल।
इसमें कली और मधुमास ( वसंत ऋतु ) दोनों अचेतन है परंतु उन्हें मानव की तरह बातें करते हुुुए मूर्त रुप में दिखाया गया हैै।
8. व्यतिरेक अलंकार-
व्यतिरेक अलंकार वह होता है ,जिसमें उपमान की अपेक्षा उपमेय का उत्कर्ष दिखाया जाता है ।व्यतिरेक में उपमान की तुलना में उपमेय में अधिक गुण बताकर उसकी उपमान से श्रेष्ठाता प्रकट की जाती है। उपमेय की उपमान से श्रेष्ठता का आधार उसमें अधिक विशेषताओं का होना होता है।
उदाहरण-
*साधु उच्च है, सेल सम, किंतु प्रकृति सुकुमार ।
इसमें साधु उपमेय हैं और शैल(पर्वत) और प्रकृृति दोनों उपमान इसमें साधु की उच्चता उसकी सबसे अधिक विशेषता है ।इस कारण उपमेय की उच्चता और उपमान की निम्नता ही व्यतिरेक अलंकार है।
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